विज्ञान एवं साहसिक कार्य हेतु प्रारंभिक खोज


एक घटना थी जो दर्शाती है कि अपरिपक्व बीरबल ने साहसिक कार्य में अपरिचित व अभिरूचि हेतु जिज्ञासा कैसे प्राप्त की। 1905 में ग्रीष्म ऋतु में पूरा परिवार मुर्री चला गया। एक सुहावनी सुबह को उसने कुछ रूमाल व एक या दो कनस्तरों को एकत्रित किया तथा अपनी बड़ी बहन व भाई से साथ चलने को कहा। छोटे ने किया वे पूर्णरूपेण समझ गए कि वह किसकी तैयारी में था। वे आत्मा की जाने बगैर घर से शांतिपूर्वक निकले तथा कस्बे के उत्तर में एक खड्ड में उतर गए, उतरते और उतरते चले गए जब तक कि वे धारा तक न पहुंच गए। नीचे जाने की यात्रा बहुत कठिन नहीं प्रतीत हो रही थी यद्यपि ऐसे बहुत से अवसर आए जब बीरबल ने उनकी खाइयों और शिलाखंडों में मदद की। पीछा करने के आवेश में, जब भूख के कष्ट ने कार्य को असहनीय बनाने के अलावा समय का पता न चला जब उन्होंने वापसी यात्रा शुरू की तब तक रात होने वाली थी। चढ़ा अधिकाधिक कठिन होते चला गया तथा बीरबल को शिलाखंडों के ऊपर से सबसे पहले सामना करना था तथा बाद में अन्य को जो पश्च दर्शन में आज पर्वत जैसे दिखते हैं। रात हो गई तथा पूरा परिवाल खलबली की हालत में था। युवा अन्वेषकों की तलाश करने को नौकरों को लालटेन के साथ भेजा जा चुका था थोड़ी जानकारी थी उन्हें कहाॅं ढूंढें किसी को चूंकि क्षणिक विश्वास न था कि वे कस्बे से बाहर गए हैं। वे थके हुए भूखे एवं खून बहाते परौं से देर रात घर पहुंचे, इसके अलावा, कम कहना अच्छा बोलना है, ग्रहण करने में सर्वोत्तम प्रत्याशा सहित हमारे गालों से अनियंत्रित अश्रु धाराएं बहरही थीं, परंतु युवा बीरबल बिल्कुल शांत थे, तथा जब पिता ने उनसे पूछा कि बिना अनुमति के घर से जाना और अपने संग बच्चों को भी ले जाने का क्या मतलब था, उन्होंने सिर्फ उत्तर दिया वह केकडों को संगृहीत करना चाहते थे। इस असाधारण कारण ने क़रीब-क़रीब घटना को मोहित कर दिया यद्यपि अंततोगत्वा इसने उनका बचाव भी सिद्ध कर दिया। ‘‘केकडे, वास्तव में!’’ पिता का पहला दृश्यांश था इसके साथ उन्होंने कदम आगे बढ़ाया। कुछ पल के लिए सबने सोचा कि सब कुछ ख़तम हो गया तथा उन्हें संभावना की विलक्षण अनुभूति के साथ उत्कंठा को समर्थन मिला। किंतु ऐसे साहसिक कार्य के प्रति उनका लगाव तथा नई चीजों के बाद खोज जो कि उन्होंने खुद ही जांची थीं और ज़्यादा कुछ नहीं कहा। बीरबल ने अपने पिता को और ज़्यादा दुर्गम व ख़तरनाक अभियानों में संग लिया। थोडे़-से उपकरण, और पादुका हेतु रस्सी निर्मित चप्पलें तथा स्थानीय मार्गदर्शक के साथ ज़ोजिला दर्रे से ज़्यादा दूरी नहीं मचोई हिमनद को पार करना इन सभी में अति उल्लेखनीय और उज्जवल था। यहां यही था ये नीचे देखना, उन्होंने गहरी खाई घाटी में ऊध्र्वाधर, जमा हुआ और इसकी बर्फीली क़ब्र में परिरक्षित एक घोडे़ को देखा। जैसे ही वह अंधेरे, विस्मय प्रेरक दरार में झांकने को झुके इसने रोंगटे खड़े कर दिए और पूर्व चेतावनी, अतत्पर क्योंकि वह ऐसे साहसिक कार्य हेतु थे। यह था कि बीरबल ने इंग्लैंड प्रस्थान से ठीक पहले ग्रीष्मकाल के दौरान लाल बर्फ (दुर्लभ बर्फ कवक) खोजी और संगृहीत की। संजोए गए अंश को प्रो. सीवर्ड ने परीक्षित किया तथा वनस्पतिविज्ञान विभाग, कैंब्रिज में अभी भी परिरक्षित है। कैंब्रिज में युवा वनस्पतिविज्ञानी हेतु यह अच्छा परिचय था। भारत में विगत काफी समय से ऐसा कवक नहीं मिला है। साहसिक कार्य के जोश के अलावा उनमें अपने अरिपक्व दिनों में शैतानी का प्रचुर अनुपात था। एक बार परिवाल शिमला में ब्रह्मो समाज से लगे हुए सदम में रूका जिसे उन्होंने अन्य परिवार के साथ साझी किया। उनके निवास और समाज के भवन के बीच एक भू-खंड था जिसमें हमने संयुक्त रूप से शाक-सब्जी वाटिका उगाई। किसी तरह छुट्टियां कम कर दी गईं और कुटुंब को शिमला के शीत शिखर को और बलबत्ता इसके संग खीरे व अध-पके मक्का-भुट्टों को भी छोड़कर जाना था।
यह बड़ा धक्का था तथा बीरबल ने समस्त खाद्य फलों को उखाड़ने की योजना बनाई। जैसेकि ये काफी नहीं था, प्रस्थान पूर्व की रात्रि में कैंची के पड़े युग्मों से तने के नीचे से पौधों की जड़ों को अपने नेतृत्व में उसने काट दिया। परिवार के प्रस्थान के उपरांत, पौधे प्राकृतिक रूप से शनै शनै स्थिर रूप से, रहस्यात्मक रूप से मुरझााने शुरू हो गए। उसके पहले के पड़ोसियों ने सोचा कि क्या यह गिरने की बीमारी थी? उन्होंने पौधों में खूब पानी लगाया उन्होंने जितना ज़्यादा पानी लगाया उतनी ही तेजी से वे मुरझाते गए। परंतु पड़ोसियों को इसका राज पता नहीं चला। जब तक कि वे लहौर वापस नहीं पहुॅंच गए! तथा इसे वे बाखूबी अभी भी याद करते हैं।
कुछ सालों बाद शैतानी के प्रति झुकाव खुशी में तब्दील हो गया। उनका प्रिय खिलौना बंदर को बहुत से लोग याद रखेंगे जो उनके साथ बहुत से महाद्वीपों पर गया तथा जिससे वह बच्चों का मनोरंजन कराया करते थे। यह वानर म्युनिख में फुटपाथ विक्रेता से खरीदा गया था। बीरबल ने कुछ बच्चों को ऐसे ही वानर से खेलते हुए देखा था तथा वह इससे बहुत मनोरंजित हुए थे। तमाम दुकानों पर खोजने के बाद वह उसी नकल का खरीदने में कामयाब हुए और प्रायः बगीचे में जाते थे जहाॅं छोटे बच्चों के खेल को पहले उन्होंने देखा था।
बल्कि बीरबल संवेदनशील प्रकृति के थे। उन्होंने शुरूआती दिनों से बड़ा लगाव था जिसकी व्याख्या उनके कालेज कैरियर की घटना से की जा सकती है। जब इंटरमीडिएट परीक्षा के परिणाम, जिसमें उनके निकटतम एवं अविभाज्य मित्र ने परीक्षा दी थी, घोषित हुए थे। दुर्भाग्य के अकथनीय आघात से उनकी कक्षा का सहपाठी असफल घोषित किया गया था। इसने घर में तूफान ही नहीं मचाया बल्कि करीब करीब त्रासदी का दौर था क्योंकि बीरबल दो दिनों तक बालक की भांति रोते रहे और खाना खाने से इन्कार कर दिया। काफी दिनों तक उनकी चाल में चिंता झलकती रही और यह अति शनै-शनै हुआ कि उन्होंने इस विचार से स्वयं को स्वीकार किया कि कालेज में उनका मित्र एक साल पीछे छूट गया है।
निष्पक्षता और निष्पक्ष व्यवहार उनकी अति उतकृष्ट अभिलाषा थी। लाहौर में (इंग्लैंड में इस समय सबसे बडे़) आंशिक रूप से बड़े भाई होने के नाते तथा आंशिक रूप से स्नेही मिज़ाज़ की वजह से कुटुंब में छोटे भाइयों व बहनों से उन्हें तटस्थ पंच के रूप में पहचाना। चाहे वह पेन्सिल या पुस्तक के स्वामित्व के बारे में झगड़ा हो या सर्दी की रातों में सबसे बाद में घर की बत्ती बुझाने की बात हो, हम सब उनके निर्णय को देखते थे तथा ज्यादा महत्वपूर्ण क्या है कि सभी लोग इसका अनुपालन करते थे।

बृहत वैज्ञानिक दिलचस्पी


बीरबल की दिलचस्पियाॅं अति बृहत थीं तथा रोहतक में 1936 में नए नए सिक्के ढालने की खोज इसका परिचय देती हैं। भू-वैज्ञानिक हथौड़े से पुरावनस्पतिविज्ञान की यह पुरातात्विक खोज मानव की मार्मिकता एवं बहुमुखी प्रतिभा द््योतित करती है। यह उनकी प्रतिभा को सम्मान है कि उन्होंने न केवल अनूठी खोज की अपितु इन नएन्नए सिक्कों को ढालने के अध्ययन में अपना दिल और आत्मा लगा दी। मुद्राविज्ञानविद् के अनुरूप विषय में अनुसंधान का नूतन मानक व्यवस्थित करते हुए उन्होंने 1945 में न्युमिस्मेटिक सोसाइटी के जर्नल में अपने निष्कर्षों को अद्वितीय पुस्तिका में प्रकाशित किया। इसके प्रयोजनार्थ उन्होंने कुछ भारतीय नए सिक्के ढालने के साथ-ही-साथ चीन के भी अध्ययन में स्वयं को व्यवस्थित किया। उन्होंने समस्त भू-वैज्ञानिक समस्याओं में अति रूचि ली जो कि उनके पुरावनस्पतिक कार्य में सीधे समाहित न थीं। किंतु यह कहना चाहिए कि यदि किसी ने उन्हें गहराई से कुरेदा है क्रोड में सदैव एक वनस्पतिविज्ञानी को पाया है।
अपने वैज्ञानिक रूचियों के अलावा, उनका संगीत के प्रति भी बहुत लगाव था और वह सितार एवं सारंगी बजाते थे। उन्हें चित्रकला एवं मिट्टी माॅडलिंग में रूचि थी तथा जब उन्हें दूसरे कार्यों से फुर्सत मिलती थी इन चित्रकलाओं में और जानकारी के लिए आट्र्स स्कूल, लखनऊ जाकर सुअवसरों का सदुपयोग किया।
स्वतंत्र दृष्टिकोण बीरबल का जीवन के प्रति मनोभाव दूसरा पहलू था जो मस्तिष्क में प्रबलता से आता है, जो विज्ञान के प्रति स्वतंत्र दृष्टिकोण एवं अनुराग दर्शाता है जिसके प्रति उनकी जिंदगी भर तथा जिसमें वह स्वयं का एवं राष्ट्र का नाम बाद में करने में श्रद्धा रखते रहे। पिता उन अनुशासकों में से एक थे जिनमें एक मात्र सुझाव प्रायः निपटारे हेतु पर्याप्त रहता था जहाॅं से निर्णय स्थापित होता था।